विश्वास

काँच के टुकड़ों की महीन किरकिरी सा
आंखों में चुभता विश्वास
हृदय पटल पर गर्म लावे सा
उबलता विश्वास
सुर्ख नम होंठों पर रक्त बूंदों सा
दहकता विश्वास
टूटी सांसों को आस की
सांस देता विश्वास
बैचेनी को थपकी देकर
सुलाता विश्वास
अपनों में परायों के होने का
अहसास कराता विश्वास
कभी अंधकार के गर्त में
गिराता विश्वास
कभी अंगुली थाम उजाले की ओर
ले जाता विश्वास
सागर सा गहरा
गगन सा विशाल
अगले ही पल क्षण भंगुर सा
होता विश्वास
जो टूटे को जोड़ दे
और जुड़े को पल में तोड़ दे
ऐसी दोधारी तलवार सा
धारदार विश्वास
कभी विश्वास में होता था
विश्व का वास
आज---
विश्वास में हो रहा
विष का वास
अपनी ही परछाईं यहां
तोड़ रही विश्वास
गर्व होता था हमें खुद के
विश्वास पर
अब खुद ही ढो रहे हैं
विश्वास की लाश  ।।

©Puja Puja

Comments

  1. बहुत सुंदर सोच और अप्रतिम

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया नीतू जी
      😊😊

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  2. वाह विश्वास का संधि विच्छेद
    विश्व का वास 👍
    विष का वास 👎
    सुंदर अभिव्यक्ति करण विश्वास का !

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    1. आभार इंदिरा जी...
      आपकी सराहना से कविता निखर गई
      शुभ दिन

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  3. बहुत सुंदर पूजा जी। श्वास तो बस एक बार टूटती है विश्वास हर मोड हर दौर मे टूटता है।
    विश्वास पर बहुत सुंदर विवेचन।

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    1. सही कहा आपने कुसुम जी
      श्वास टूटने से ज्यादा दुखदायी विश्वास का टूटना होता है....लेखनी सार्थक हुई
      शुभ दिवस

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  4. विश्वास... वाह्ह अद्भुत... आदरणीया👌👌👌👏👏👏

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    1. आपके शब्दों से उत्साहित हूं अमित जी
      बहुत आभार

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  5. प्रिय पूजा जी -खंडित विश्वास से बढ़कर कुछ दुखदायी नहीं | उसी विस्वास को लाश की तरह ढोना बहुत भयावह है |चिंतन परक रचना | सस्नेह ---

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